Coupletss of Allama Iqbal (page 4)
नाम | अल्लामा इक़बाल |
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अंग्रेज़ी नाम | Allama Iqbal |
जन्म की तारीख | 1877 |
मौत की तिथि | 1938 |
जन्म स्थान | Lahore |
गुलज़ार-ए-हस्त-ओ-बूद न बेगाना-वार देख
ग़ुलामी में न काम आती हैं शमशीरें न तदबीरें
गेसू-ए-ताबदार को और भी ताबदार कर
गला तो घोंट दिया अहल-ए-मदरसा ने तिरा
फ़ितरत को ख़िरद के रू-ब-रू कर
फ़िर्क़ा-बंदी है कहीं और कहीं ज़ातें हैं
फ़क़त निगाह से होता है फ़ैसला दिल का
एक सरमस्ती ओ हैरत है सरापा तारीक
दुनिया की महफ़िलों से उकता गया हूँ या रब
दिल सोज़ से ख़ाली है निगह पाक नहीं है
दिल से जो बात निकलती है असर रखती है
ढूँडता फिरता हूँ मैं 'इक़बाल' अपने आप को
बुतों से तुझ को उमीदें ख़ुदा से नौमीदी
भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी
बे-ख़तर कूद पड़ा आतिश-ए-नमरूद में इश्क़
बाग़-ए-बहिश्त से मुझे हुक्म-ए-सफ़र दिया था क्यूँ
बातिल से दबने वाले ऐ आसमाँ नहीं हम
अज़ाब-ए-दानिश-ए-हाज़िर से बा-ख़बर हूँ मैं
'अत्तार' हो 'रूमी' हो 'राज़ी' हो 'ग़ज़ाली' हो
अक़्ल को तन्क़ीद से फ़ुर्सत नहीं
अपने मन में डूब कर पा जा सुराग़-ए-ज़ि़ंदगी
अनोखी वज़्अ' है सारे ज़माने से निराले हैं
अंदाज़-ए-बयाँ गरचे बहुत शोख़ नहीं है
अमल से ज़िंदगी बनती है जन्नत भी जहन्नम भी
ऐ ताइर-ए-लाहूती उस रिज़्क़ से मौत अच्छी
अगर हंगामा-हा-ए-शौक़ से है ला-मकाँ ख़ाली
अच्छा है दिल के साथ रहे पासबान-ए-अक़्ल
आँख जो कुछ देखती है लब पे आ सकता नहीं
आईन-ए-जवाँ-मर्दां हक़-गोई ओ बे-बाकी