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हवाओं में दिलों का कारवाँ है - अल्का मिश्रा कविता - Darsaal

हवाओं में दिलों का कारवाँ है

हवाओं में दिलों का कारवाँ है

मुक़द्दस इश्क़ जब से मेहरबाँ है

मिरे दिल को सुकूँ आया यहीं पर

बड़ा मख़्सूस तेरा आस्ताँ है

वो मुझ से दूर जाएगा भी कैसे

जो मेरी रूह के अंदर निहाँ है

मोहब्बत के सफ़र पर जाओ लेकिन

वहाँ हर मोड़ पर इक इम्तिहाँ है

मिरे दिल पर उसी की है हुकूमत

लकीरों में मिरी जिस का निशाँ है

छुपा सकती नहीं उस से मैं कुछ भी

मिरा हर राज़ तो उस पर अयाँ है

फ़िराक़-ओ-वस्ल की हद से निकल कर

अजब से मोड़ पर अब दास्ताँ है

मिलें हैं चंद लम्हे खुल के जी लें

वगर्ना ज़िंदगी तो राएगाँ है

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