तेज़ी तिरे मिज़्गाँ की ये नश्तर से कहूँगा
तेज़ी तिरे मिज़्गाँ की ये नश्तर से कहूँगा
अबरू की शिकायत दम-ए-ख़ंजर से कहूँगा
हम-रंग-ए-शम्अ' इश्क़ में तेरे हूँ व-लेकिन
ये सोज़-ए-जिगर आतिश मुजमर से कहूँगा
देखा हूँ मैं जिस रोज़ से तुझ हुस्न का झलका
है दिल में कभी जामा-ए-अनवर से कहूँगा
तंगी जो तिरे पिस्ता-दहन की है सरासर
सर-बस्ता सुख़न गुंचा-ए-जौहर से कहूँगा
सैराब न हूँ तुझ लब-ए-शीरीं से अगर मैं
ये तिश्ना-लबी चश्मा-ए-कौसर से कहूँगा
बूझा है 'अलीम' आज कि है हुस्न का तू गंज
ये ख़ुश-ख़बरी आशिक़-ए-बे-ज़र से कहूँगा
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