पीतम के देखने के तमाशा को जाएँ चल
पीतम के देखने के तमाशा को जाएँ चल
अपने पिया को इश्क़ सूँ अपने रिझाएँ चल
जल्सा किया है यार महल में जली के आज
ख़ल्वत में अब ख़फ़ी के पिया को बुलाएँ चल
पर्वा नहीं पिया को किसी के विसाल सूँ
फ़न सूँ उसी के उस को अपस में रिझाएँ चल
दम का सुरूद कर के इरादे का तार बाँध
सतरी सदा का सूर बजा कर सुनाएँ चल
नासूत से गुज़र के तफ़र्रोह सूँ ऐ 'अलीम'
लाहूत के मकाँ में सदा ग़ुल मचाएँ चल
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