ख़यालात रंगीं नहीं बोलते उस को ज्यूँ बास फूलों के रंगों में रहिए
ख़यालात रंगीं नहीं बोलते उस को ज्यूँ बास फूलों के रंगों में रहिए
दो-रंगी सूँ जाना गुज़र दिल सूँ अव्वल बज़ाँ जा के वाँ एक रंगों में रहिए
वो वहशत के जंगल में हो कर परेशाँ पहाड़ों से ग़म के न हो संग हरगिज़
शरर हो के छिड़ संग तिनके सूँ जल्दी सकल रूह हो बर्क़ रंगों में रहिए
नहीं मौज-ए-दरिया की दहशत उसे जो कि मारा है ग़ोता हो ग़व्वास दिल में
तह-ए-बहर-ए-वहदत में ग़व्वास होने को तालीम पाने नहंगों में रहिए
शहादत मिले चार तन सूँ तुझे गर करे क़त्ल तू पाँच मूज़ियाँ कूँ दिल के
शहीदों की रह साथ हर वक़्त हमदम हो ज्यूँ शेर शेरान जंगों में रहिए
फ़लक चर्ख़-ए-कज-रौ सूँ देखे अगर ख़ूब नैरंग-बाज़ी ज़माने की हिकमत
गुज़र ग़ैर सोहबत सूँ मदहोश हो जा पहाड़ों में जा कर भुजंगों में रहिए
समझ ऐ 'अलीम' आज राह-ए-हक़ीक़त निपट सख़्त मुश्किल है जाँ सूँ गुज़रना
पतंग हो के जलने में वासिल रहें हक़ सूँ हो मर्द-ए-वाहिद यकंगों में रहिए
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