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जब पियारा गिला सुनाता है - अलीमुल्लाह कविता - Darsaal

जब पियारा गिला सुनाता है

जब पियारा गिला सुनाता है

इश्क़ ताज़ा बदन में आता है

होश जाता है सर सूँ सब यक बार

जब घुँघट खोल मुख दिखाता है

तब अदू देख कर मुझे मेरा

मार के मिस्ल पेच खाता है

ख़ाक होता है बल्कि जल उस वक़्त

मुझ को ख़ल्वत में जब बुलाता है

मुझ को ले जा प्यास अपस घर में

बादा-ए-वस्ल फिर पिलाता है

कर मजाज़ी में फ़न हक़ीक़त का

हासिदाँ के दिलाँ जलाता है

शेर तेरा अजब 'अलीमुल्लाह'

शोला-ए-इश्क़ को चताता है

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