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इश्क़ आ हम सूँ किया जब राम राम - अलीमुल्लाह कविता - Darsaal

इश्क़ आ हम सूँ किया जब राम राम

इश्क़ आ हम सूँ किया जब राम राम

हम किसी हाजी को नहिं करते सलाम

मज्लिस-ए-रिंदाँ में ज़ाहिद नहिं सुना

है सबक़ अव्वल वहाँ का जाम जाम

गर ख़लासी हश्र की मंगता है तू

रिंदगी के पी मय-ए-गुलफ़ाम फ़ाम

पूछता है क्या हमारे रम्ज़ को

बे-समझ बे-इश्क़ ज़ाहिद ख़ाम ख़ाम

गर दिखा दें यार के काकुल का तार

सुब्ह को आलम कहेगा शाम शाम

आशिक़ी के मोहकमे में हैं निकात

जान-आे-तन और अक़्ल-ओ-दिल सब दाम दाम

ऐ 'अलीमुल्लाह' ज़ाहिद को लताड़

फ़ाज़िलाँ में ख़ुश मचाया धूम-धाम

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