इश्क़ आ हम सूँ किया जब राम राम
इश्क़ आ हम सूँ किया जब राम राम
हम किसी हाजी को नहिं करते सलाम
मज्लिस-ए-रिंदाँ में ज़ाहिद नहिं सुना
है सबक़ अव्वल वहाँ का जाम जाम
गर ख़लासी हश्र की मंगता है तू
रिंदगी के पी मय-ए-गुलफ़ाम फ़ाम
पूछता है क्या हमारे रम्ज़ को
बे-समझ बे-इश्क़ ज़ाहिद ख़ाम ख़ाम
गर दिखा दें यार के काकुल का तार
सुब्ह को आलम कहेगा शाम शाम
आशिक़ी के मोहकमे में हैं निकात
जान-आे-तन और अक़्ल-ओ-दिल सब दाम दाम
ऐ 'अलीमुल्लाह' ज़ाहिद को लताड़
फ़ाज़िलाँ में ख़ुश मचाया धूम-धाम
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