Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_8b287bd8ff368c0152928e01a09b1140, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
अपने से बे-समझ को हक़ की कहाँ पछानत - अलीमुल्लाह कविता - Darsaal

अपने से बे-समझ को हक़ की कहाँ पछानत

अपने से बे-समझ को हक़ की कहाँ पछानत

'मन-अरफ़ा' को न बूझा 'क़द-अरफ़ा' सूँ जिहालत

है फ़र्ज़ बूझ अव्वल अपना पिछे ख़ुदा को

बे-बूझ बंदगी है सब रंज और मलामत

जन्नत की तू मज़दूरी बूझा है बंदगी को

बख़्शिश नहीं है हरगिज़ जुज़ लुत्फ़ और इनायत

हिर्स-ओ-हवा में पड़ कर हक़ सूँ हुआ है बातिल

फिर माँगता है जन्नत क्या नफ़्स-ए-बद-ख़सालत

बिन क़ल्ब की हुज़ूरी मंज़ूर क्यूँ पड़ेगा

रोज़ा नमाज़ रस्मी सज्दा सुजूद ताअत

माबूद के मुक़ाबिल आबिद को अबदियत है

ग़ीबत में चुप रिझाना क्या महज़ है ख़जालत

तन नफ़्स और दिल रूह सर नूर-ए-ज़ात मिल कर

अपने में हक़ को पाना है अफ़ज़लुलइबादत

बिन पीर के ख़ुदा को पाया न कोई हरगिज़

कामिल को क्यूँ पछाने बे-सिदक़ ओ बे-हिदायत

नहिं है 'अलीम' को सच तक़्वा अमल पे अपने

दीदार का सनम के काफ़ी है इस्तक़ामत

(740) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Apne Se Be-samajh Ko Haq Ki Kahan Pachhanat In Hindi By Famous Poet Alimullah. Apne Se Be-samajh Ko Haq Ki Kahan Pachhanat is written by Alimullah. Complete Poem Apne Se Be-samajh Ko Haq Ki Kahan Pachhanat in Hindi by Alimullah. Download free Apne Se Be-samajh Ko Haq Ki Kahan Pachhanat Poem for Youth in PDF. Apne Se Be-samajh Ko Haq Ki Kahan Pachhanat is a Poem on Inspiration for young students. Share Apne Se Be-samajh Ko Haq Ki Kahan Pachhanat with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.