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जुदा किया तो बहुत ही हँसी-ख़ुशी उस ने - अलीमुल्लाह हाली कविता - Darsaal

जुदा किया तो बहुत ही हँसी-ख़ुशी उस ने

जुदा किया तो बहुत ही हँसी-ख़ुशी उस ने

बदल दिया है अब अंदाज़-ए-बेरुख़ी उस ने

वो रंग रंग उड़ा ख़ुशबुओं में फैल गया

झटक दिया है मिरा दामन-ए-तही उस ने

जिसे सुना के मुझे ख़ौफ़-ए-सर-ज़निश सा रहा

उसी कलाम पे बढ़-चढ़ के दाद दी उस ने

वो मेरे साथ शुरू-ए-सफ़र चला था मगर

हुजूम-ए-शहर में ली राह और ही उस ने

हुआ हूँ जुरअत-ए-जुर्म-ए-वफ़ा से भी महरूम

सज़ा ये दी कि ख़ता मेरी बख़्श दी उस ने

अब अपनी कोई सदा है न अपना कोई पता

पिला दिया है मुझे ज़हर-ए-आगही उस ने

दर-ए-सुकूत पे 'हाली' बहुत है शोर-ए-सदा

बपा किया है वो तूफ़ान-ए-ख़ामुशी उस ने

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