तुम सर्वत को पढ़ती हो
तुम सर्वत को पढ़ती हो
कितनी अच्छी लड़की हो
बात नहीं सुनती हो क्यूँ
ग़ज़लें भी तो सुनती हो
क्या रिश्ता है शामों से
सूरज की क्या लगती हो
लोग नहीं डरते रब से
तुम लोगों से डरती हो
मैं तो जीता हूँ तुम में
तुम क्यूँ मुझ पे मरती हो
आदम और सुधर जाए
तुम भी हद ही करती हो
किस ने जींस करी ममनूअ'
पहनो अच्छी लगती हो
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