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मन जिस का मौला होता है - अली ज़रयून कविता - Darsaal

मन जिस का मौला होता है

मन जिस का मौला होता है

वो बिल्कुल मुझ सा होता है

आँखें हंस कर पूछ रही हैं

नींद आने से क्या होता है

मिट्टी की इज़्ज़त होती है

पानी का चर्चा होता है

जानता हूँ मंसूर को भी मैं

अपने ही घर का होता है

अच्छी लड़की ज़िद नहीं करते

देखो इश्क़ बुरा होता है

वहशत का इक गुर है जिस में

क़ैस अपना बच्चा होता है

बाज़-औक़ात मुझे दुनिया पर

दुनिया का भी शुबह होता है

तुम मुझ को अपना कहते हो

कह लेने से क्या होता है

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