वो तो था आदमी की तरह 'ज़हीर'
उस का चेहरा फ़रिश्तों जैसा था
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दर्द हर रंग से अतवार-ए-दुआ माँगे है
नफ़रत से मोहब्बत को सहारे भी मिले हैं
मैं बड़ी मुश्किल में हूँ
वरक़-ए-इंतिख़ाब दिल में है
कसाफ़त
मिरा ख़ून-ए-जिगर पुर-नूर बन जाए तो अच्छा हो
कान सुनते तो हैं लेकिन न समझने के लिए
दिल ये कहता है कि इक आलम-ए-मुज़्तर देखूँ
ज़रा पर्दा हटा दो सामने से बिजलियाँ चमकें
ताज़ा मंज़र
हमारी ज़िंदगी क्या है मोहब्बत ही मोहब्बत है