कान सुनते तो हैं लेकिन न समझने के लिए
कोई समझा भी तो मफ़्हूम नया माँगे है
Anwar Masood
Rahat Indori
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Gulzar
Jaun Eliya
Habib Jalib
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Love Poetry
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Sharabi Poetry
Friends Poetry
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किसे बताएँ कि क्या ग़म रहा है आँखों में
कसाफ़त
मिरा ख़ून-ए-जिगर पुर-नूर बन जाए तो अच्छा हो
वरक़-ए-इंतिख़ाब दिल में है
नफ़रत से मोहब्बत को सहारे भी मिले हैं
हमारी ज़िंदगी क्या है मोहब्बत ही मोहब्बत है
ताज़ा मंज़र
ज़रा पर्दा हटा दो सामने से बिजलियाँ चमकें
तुम से
एक रात एक सुब्ह
काला समुंदर