किसे बताएँ कि क्या ग़म रहा है आँखों में
किसे बताएँ कि क्या ग़म रहा है आँखों में
हर एक सिलसिला दिरहम रहा है आँखों में
यहाँ न सावन ओ भादों न जेठ है न असाढ़
बस एक ख़ून का मौसम रहा है आँखों में
लहू की आँख थी वो या गुलू-बुरीदा था
ये कैसे ख़ौफ़ का आलम रहा है आँखों में
कभी है दर्द का चेहरा कभी सुकून-ए-नज़र
ये एहतिमाम तो पैहम रहा है आँखों में
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