दर्द हर रंग से अतवार-ए-दुआ माँगे है
दर्द हर रंग से अतवार-ए-दुआ माँगे है
लहज़ा लहज़ा मिरे ज़ख़्मों का पता माँगे है
इतनी आँखें हैं मगर देखती क्या रहती हैं
ये तमाशा तो ख़ुदा जानिए क्या माँगे है
सब तो होश्यार हुए तुम भी सियाने बन जाओ
देखो हर शख़्स वफ़ाओं का सिला माँगे है
कान सुनते तो हैं लेकिन न समझने के लिए
कोई समझा भी तो मफ़्हूम नया माँगे है
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