सवाद-ए-शौक़-ओ-तलब ग़म का बाब ऐसा था
सवाद-ए-शौक़-ओ-तलब ग़म का बाब ऐसा था
जला के ख़ाक किया इज़्तिराब ऐसा था
बहुत ही तल्ख़ था या'नी शराब ऐसा था
सवाल याद नहीं है जवाब ऐसा था
तमाज़तों ने ग़म-ए-हिज्र की उजाड़ दिया
बदन था फूल सा चेहरा किताब ऐसा था
मैं काँप काँप गया हूँ ब-नाम-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ
शुमार-ए-ज़ख़्म-ए-हुनर का जवाब ऐसा था
सुलग रहे थे मिरे होंट जल रहा था बदन
ज़बाँ से कुछ न कहा था हिजाब ऐसा था
मिरी तलब ही बनी मेरे पाँव की ज़ंजीर
भटक रहा हूँ मैं अब तक सराब ऐसा था
झुलस के रह गया चेहरा तमाम ख़्वाबों का
ख़ुमार-ए-तिश्ना-लबी का अज़ाब ऐसा था
वो अहद-ए-गुमरही कहता है उस की मर्ज़ी है
जो देख ले तू तड़प जाए ख़्वाब ऐसा था
बहुत ही ज़ो'म था अपनी मोहब्बतों पे उसे
निभा सका न वफ़ा कामयाब ऐसा था
रफ़ाक़तों का फ़ुसूँ टूटना ही था 'विज्दान'
सफ़र में छोड़ गया है ख़राब ऐसा था
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