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कहा था मैं ने क्या तू ने सुना क्या - अली वजदान कविता - Darsaal

कहा था मैं ने क्या तू ने सुना क्या

कहा था मैं ने क्या तू ने सुना क्या

मगर इस बात का तुझ से गिला क्या

जो मेरे कर्ब से ग़ाफ़िल रहा था

उसी को अब कहूँ दर्द-आश्ना क्या

यही ठहरी है कश्ती डूब जाए

तो ऐसे में ख़ुदा क्या नाख़ुदा क्या

दिलों के राब्ते बाक़ी हैं जानाँ

तो फिर ये दरमियाँ का फ़ासला क्या

गली-कूचों में सन्नाटा है कैसा

'अली-'विज्दान' आशिक़ मर गया क्या

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