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प्यास की आग - अली सरदार जाफ़री कविता - Darsaal

प्यास की आग

मैं कि हूँ प्यास के दरिया की तड़पती हुई मौज

पी चुका हूँ मैं समुंदर का समुंदर फिर भी

एक इक क़तरा-ए-शबनम को तरस जाता हूँ

क़तरा-ए-शबनम-ए-अश्क

क़तरा-ए-शबनम-ए-दिल ख़ून-ए-जिगर

क़तरा-ए-नीम-नज़र

या मुलाक़ात के लम्हों के सुनहरी क़तरे

जो निगाहों की हरारत से टपक पड़ते हैं

और फिर लम्स के नूर

और फिर बात की ख़ुश्बू में बदल जाते हैं

मुझ को ये क़तरा-ए-शादाब भी चख लेने दो

दिल में ये गौहर-ए-नायाब भी रख लेने दो

ख़ुश्क हैं होंट मिरे ख़ुश्क ज़बाँ है मेरी

ख़ुश्क है दर्द का, नग़्मे का गुलू

मैं अगर पी न सका वक़्त का ये आब-ए-हयात

प्यास की आग में डरता हूँ कि जल जाऊंगा

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Pyas Ki Aag In Hindi By Famous Poet Ali Sardar Jafri. Pyas Ki Aag is written by Ali Sardar Jafri. Complete Poem Pyas Ki Aag in Hindi by Ali Sardar Jafri. Download free Pyas Ki Aag Poem for Youth in PDF. Pyas Ki Aag is a Poem on Inspiration for young students. Share Pyas Ki Aag with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.