एक सवाल
मा'लूम नहीं ज़ेहन की पर्वाज़ की ज़द में
सरसब्ज़ उमीदों का चमन है कि नहीं है
लेकिन ये बता वक़्त का बहता हुआ धारा
तूफ़ान-गर ओ कोह-शिकन है कि नहीं है
सरमाए के सिमटे हुए होंटों का तबस्सुम
मज़दूर के चेहरे की थकन है कि नहीं
वो ज़ेर-ए-उफ़ुक़ सुब्ह की हल्की सी सपेदी
ढलते हुए तारों का कफ़न है कि नहीं है
पेशानी-ए-अफ़्लास से जो फूट रही है
उठते हुए सूरज की किरन है कि नहीं है
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