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ये बेकस-ओ-बेक़रार चेहरे - अली सरदार जाफ़री कविता - Darsaal

ये बेकस-ओ-बेक़रार चेहरे

ये बेकस-ओ-बेक़रार चेहरे

सदियों के ये सोगवार चेहरे

मिट्टी में पड़े दमक रहे हैं

हीरों की तरह हज़ार चेहरे

ले जा के इन्हें कहाँ सजाएँ

ये भूक के शिकार चेहरे

अफ़्रीक़ा-ओ-एशिया की ज़ीनत

ये नादिर-ए-रोज़गार चेहरे

खोई हुई अज़्मतों के वारिस

कल रात के यादगार चेहरे

ग़ाज़े से सफ़ेद मय से रंगीं

इस दौर के दाग़दार चेहरे

गुज़रे हैं निगाह-ओ-दिल से हो कर

हर तरह के बे-शुमार चेहरे

मग़रूर अना के घोंसले में

बैठे हुए कम-अयार चेहरे

काबिल-ए-इल्तिफ़ात आँखें

ना-क़ाबिल-ए-ए'तिबार चेहरे

इन सब से हसीन-तर हैं लेकिन

रिंदों के गुनाहगार चेहरे

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