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वो मिरी दोस्त वो हमदर्द वो ग़म-ख़्वार आँखें - अली सरदार जाफ़री कविता - Darsaal

वो मिरी दोस्त वो हमदर्द वो ग़म-ख़्वार आँखें

वो मिरी दोस्त वो हमदर्द वो ग़म-ख़्वार आँखें

एक मासूम मोहब्बत की गुनहगार आँखें

शोख़-ओ-शादाब-ओ-हसीं सादा-ओ-पुरकार आँखें

मस्त-ओ-सरशार-ओ-जवाँ बे-ख़ुद-ओ-होशियार आँखें

तिरछी नज़रों में वो उलझी हुई सूरज की किरन

अपने दुज़्दीदा इशारों में गिरफ़्तार आँखें

जुम्बिश-ए-अबरू-ओ-मिज़्गाँ कै ख़ुनुक साए में

आतिश-अफ़रोज़ जुनूँ-ख़ेज़ शरर-बार आँखें

कैफ़ियत दिल की सुनाती हुई एक एक निगाह

बे-ज़बाँ हो के भी वो माइल-ए-गुफ़्तार आँखें

मौसम-ए-गुल में वो उड़ते हुए भौँरों की तरह

ग़ुंचा-ए-दिल पे वो करती हुई यलग़ार आँखें

कभी छलकी हुई शर्बत के कटोरों की तरह

और कभी ज़हर में डूबी हुई तलवार आँखें

कभी ठहरी हुई यख़-बस्ता ग़मों की झीलें

कभी सहमा हुआ सिमटा हुआ इक प्यार आँखें

कभी झुकते हुए बादल कभी गिरती बिजली

कभी उठती हुई आमादा-ए-पैकार आँखें

नोक-ए-अबरू में कभी तलख़ी-ए-इंकार लिए

कभी घोले हुए शीरीनी-ए-इक़रार आँखें

आँच में अपनी जवानी की सुलगती चितवन

शबनम-ए-अश्क में धोई हुई गुलनार आँखें

हुस्न के चाँद से मुखड़े पे चमकते तारे

हाए आँखें वो हरीफ़-ए-लब-ओ-रुख़सार आँखें

इशवा-ओ-ग़मज़ा-ओ-अंदाज़-ओ-अदा पर नाज़ाँ

अपने पिंदार-ए-जवानी की परस्तार आँखें

रूह को रोग मोहब्बत का लगा देती हैं

सेहत-ए-दिल जो अता करती हैं बीमार आँखें

सेहन-ए-ज़िंदाँ में है फिर रात के तारों का हुजूम

शम्अ' की तरह फ़रोज़ाँ सर-ए-दीवार आँखें

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