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सितारों के पयाम आए बहारों के सलाम आए - अली सरदार जाफ़री कविता - Darsaal

सितारों के पयाम आए बहारों के सलाम आए

सितारों के पयाम आए बहारों के सलाम आए

हज़ारों नामा-हा-ए-शौक़ अहल-ए-दिल के काम आए

न जाने कितनी नज़रें उस दिल-ए-वहशी पे पड़ती हैं

हर इक को फ़िक्र है उस की ये शाहीं ज़ेर-ए-दाम आए

इसी उम्मीद में बेताबी-ए-जाँ बढ़ती जाती है

सुकून-ए-दिल जहाँ मुमकिन हो शायद वो मक़ाम आए

हमारी तिश्नगी बुझती नहीं शबनम के क़तरों से

जिसे साक़ी-गरी की शर्म हो आतिश-ब-जाम आए

कोई शायद हमारे दाग़-ए-दिल की तरह रौशन हो

हज़ारों आफ़्ताब इस शौक़ में बाला-ए-बाम आए

इन्हें राहों में शैख़-ओ-मुहतसिब हाइल रहे अक्सर

इन्हें राहों में हूरान-ए-बहिश्ती के ख़ियाम आए

निगाहें मुंतज़िर हैं एक ख़ुर्शीद-ए-तमन्ना की

अभी तक जितने मेहर-ओ-माह आए ना-तमाम आए

ये आलम लज़्ज़त-ए-तख़्लीक़ का है रक़्स-ए-लाफ़ानी

तसव्वुर-ख़ाना-ए-हैरत में लाखों सुब्ह-ओ-शाम आए

कोई 'सरदार' कब था इस से पहले तेरी महफ़िल में

बहुत अहल-ए-सुख़न उठ्ठे बहुत अहल-ए-कलाम आए

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