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लू के मौसम में बहारों की हवा माँगते हैं - अली सरदार जाफ़री कविता - Darsaal

लू के मौसम में बहारों की हवा माँगते हैं

लू के मौसम में बहारों की हवा माँगते हैं

हम कफ़-ए-दस्त-ए-ख़िज़ाँ पर भी हिना माँगते हैं

हम-नशीं सादा-दिली-हा-ए-तमन्ना मत पूछ

बे-वफ़ाओं से वफ़ाओं का सिला माँगते हैं

काश कर लेते कभी का'बा-ए-दिल का भी तवाफ़

वो जो पत्थर के मकानों से ख़ुदा माँगते हैं

जिस में हो सतवत-ए-शाहीन की परवाज़ का रंग

लब-ए-शाइ'र से वो बुलबुल की नवा माँगते हैं

ताकि दुनिया पे खुले उन का फ़रेब-ए-इंसाफ़

बे-ख़ता हो के ख़ताओं की सज़ा माँगते हैं

तीरगी जितनी बढ़े हुस्न हो अफ़्ज़ूँ तेरा

कहकशाँ माँग में माथे पे ज़िया माँगते हैं

ये है वारफ़्तगी-ए-शौक़ का आलम 'सरदार'

बारिश-ए-संग है और बाद-ए-सबा माँगते हैं

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