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ख़ूगर-ए-रू-ए-ख़ुश-जमाल हैं हम - अली सरदार जाफ़री कविता - Darsaal

ख़ूगर-ए-रू-ए-ख़ुश-जमाल हैं हम

ख़ूगर-ए-रू-ए-ख़ुश-जमाल हैं हम

नाज़-ए-परवर्दा-ए-विसाल हैं हम

हम को यूँ राएगाँ न कर देना

हासिल-ए-फ़स्ल-ए-माह-ओ-साल हैं हम

रंग ही रंग ख़ुशबू ही ख़ुशबू

गर्दिश-ए-साग़र-ए-ख़याल हैं हम

रौनक़-ए-कारोबार-ए-हस्ती हैं

हम ने माना शिकस्ता-हाल हैं हम

माल-ओ-ज़र, माल-ओ-ज़र की क़ीमत क्या

साहिब-ए-दौलत-ए-कमाल हैं हम

किस की रानाई-ए-ख़याल है तू

तेरी रानाई-ए-जमाल हैं हम

ऐसे दीवाने फिर न आएँगे

देख लो हम को बे-मिसाल हैं हम

दौलत-ए-हुस्न-ए-ला-ज़वाल है तू

दौलत-ए-इश्क़-ए-ला-ज़वाल हैं हम

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