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दिल की आग जवानी के रुख़्सारों को दहकाए है - अली सरदार जाफ़री कविता - Darsaal

दिल की आग जवानी के रुख़्सारों को दहकाए है

दिल की आग जवानी के रुख़्सारों को दहकाए है

बहे पसीना मुखड़े पर या सूरज पिघला जाए है

मन इक नन्हा सा बालक है हुमक हुमक रह जाए है

दूर से मुख का चाँद दिखा कर कौन उसे ललचाए है

मय है तेरी आँखों में और मुझ पे नशा सा तारी है

नींद है तेरी पलकों में और ख़्वाब मुझे दिखलाए है

तेरे क़ामत की लर्ज़िश से मौज-ए-मय में लर्ज़िश है

तेरी निगह की मस्ती ही पैमानों को छलकाए है

तेरा दर्द सलामत है तो मरने की उम्मीद नहीं

लाख दुखी हो ये दुनिया रहने की जगह बन जाए है

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