मुख़ासिमत
किताबों में लिखी
मुआशरती बे-हिसी की ला-ज़वाल कहानियों से ना-आश्ना
जब कोई लड़की
अपने आश्ना के साथ भाग जाती है
तो इलाक़े के थाने में रखी हुई किताब
एक कहानी को जनम देती है
जिस की वरक़-गर्दानी करते हुए
कितने ही राशी अफ़सर मुअत्तल हो चुके हैं
लेकिन आज भी
जुमा के ख़ुत्बे से पहले
इलाक़े का मौलवी
सआदत-हसन-मंटो को गाली देना नहीं भूलता
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