नज़्ज़ारा-ए-जमाल की फ़ुर्सत कहाँ मिली
पहली नज़र नज़र की हदों से गुज़र गई
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गुफ़्तुगू के ख़त्म हो जाने पर आया ये ख़याल
हैं वजूद-ए-शय में पिन्हाँ अज़ल ओ अबद के रिश्ते
आँखों में अश्क भर के मुझ से नज़र मिला के
मंज़िल-ए-दिल मिली कहाँ ख़त्म-ए-सफ़र के बाद भी
ऐश ही ऐश है न सब ग़म है
दयार-ए-सज्दा में तक़लीद का रिवाज भी है
राह-ए-उल्फ़त में मिले ऐसे भी दीवाने मुझे
हम-सफ़र गुम रास्ते ना-पैद घबराता हूँ मैं
लज़्ज़त-ए-दर्द मिली इशरत-ए-एहसास मिली
इक आह-ए-ज़ेर-ए-लब के गुनहगार हो गए
जिन हौसलों से मेरा जुनूँ मुतमइन न था
दीन ओ दिल पहली ही मंज़िल में यहाँ काम आए