नया मय-कदे में निज़ाम आ गया
नया मय-कदे में निज़ाम आ गया
उठीं बंदिशें इज़्न-ए-आम आ गया
नज़र में वो कैफ़-ए-दवाम आ गया
कि गोया किसी का पयाम आ गया
मोहब्बत में वो भी मक़ाम आ गया
कि मिज़्गाँ पे ख़ूँ लब पे नाम आ गया
सर-ए-राह काँटे बिछाता है शौक़
जुनूँ को भी कुछ एहतिमाम आ गया
न इल्ज़ाम उन पर न अग़्यार पर
ये दिल आप ही ज़ेर-ए-दाम आ गया
बदल ही गया बज़्म-ए-इशरत का रंग
मिरा नग़्मा-ए-दर्द काम आ गया
किधर से ये सनकी महकती हवा
किधर से वो नाज़ुक-ख़िराम आ गया
तमाशा नहीं था मिरा इज़्तिराब
कोई क्यूँ ये बाला-ए-बाम आ गया
बयाँ हो रहा था फ़साना मिरा
मगर बार-बार उन का नाम आ गया
कभी सामने कुछ ख़मोशी रही
कभी दूर से कुछ पयाम आ गया
जो दार-ओ-रसन से भी रुकता नहीं
सरों में वो सौदा-ए-ख़ाम आ गया
वो 'ज़ैदी' वही रिंद-ए-आतिश-नवा
वो ज़िंदा दिलों का इमाम आ गया
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