Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_b7568b6810ca4eb31caa6360b18d19bd, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
जो मक़्सद गिर्या-ए-पैहम का है वो हम समझते हैं - अली जव्वाद ज़ैदी कविता - Darsaal

जो मक़्सद गिर्या-ए-पैहम का है वो हम समझते हैं

जो मक़्सद गिर्या-ए-पैहम का है वो हम समझते हैं

मगर जिन को समझना चाहिए था कम समझते हैं

ज़रा मेरे जुनूँ की काविश-ए-तामीर तो देखें

जो बज़्म-ए-ज़िंदगी को दरहम ओ बरहम समझते हैं

उन आँखों में नहीं नश्तर ख़ुद अपने दिल में पिन्हाँ है

अब इतनी बात तो कुछ हम भी ऐ हमदम समझते हैं

ये उन की मेहरबानी है ये उन की इज़्ज़त-अफ़ज़ाई

कि मेरे ज़ख़्म को वो लाइक़-ए-मरहम समझते हैं

हम अहल-ए-दिल ने मेयार-ए-मोहब्बत भी बदल डाले

जो ग़म हर फ़र्द का ग़म है उसी को ग़म समझते हैं

झिजकते से क़दम बहकी सी नज़रें रुकती सी बातें

ये अंदाज़-ए-तजाहुल वो है जिस को हम समझते हैं

सुलूक-ए-दोस्त भी है इक इशारा तेज़-गामी का

हम अहल-ए-कारवाँ आँचल को भी परचम समझते हैं

हटो अहल-ए-ख़िरद अहल-ए-जुनूँ को जाने दो आगे

वही कुछ राह-ए-हस्ती के ये पेच ओ ख़म समझते हैं

पलक से इस तरह टपका कि गोया इक कली चटकी

हम अहल-ए-दर्द अश्क-ए-ग़म को भी शबनम समझते हैं

ख़ुलूस-ए-ज़ाहिरी रोज़ाना इक महफ़िल सजाता है

समझते वो भी हैं लेकिन अभी कम कम समझते हैं

(763) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Jo Maqsad Girya-e-paiham Ka Hai Wo Hum Samajhte Hain In Hindi By Famous Poet Ali Jawwad Zaidi. Jo Maqsad Girya-e-paiham Ka Hai Wo Hum Samajhte Hain is written by Ali Jawwad Zaidi. Complete Poem Jo Maqsad Girya-e-paiham Ka Hai Wo Hum Samajhte Hain in Hindi by Ali Jawwad Zaidi. Download free Jo Maqsad Girya-e-paiham Ka Hai Wo Hum Samajhte Hain Poem for Youth in PDF. Jo Maqsad Girya-e-paiham Ka Hai Wo Hum Samajhte Hain is a Poem on Inspiration for young students. Share Jo Maqsad Girya-e-paiham Ka Hai Wo Hum Samajhte Hain with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.