गुलज़ार
वो इक लम्हा बड़ा मुक़द्दस था
वो इक लम्हा कि जिस में
आसमाँ सब आयतों का विर्द करते थे
सितारे हाथ में ले कर
जहन्नम की सुलगती और दहकती आग के ऊपर
फ़रिश्ते अपने अपने पंखों की
बूँदें झटकते थे
ख़ुदा ने एक लम्हे को निगाहें मूँद कर अपनी
तसल्लुत की गिरह को ढीला छोड़ा था
निज़ाम-ए-अज़ल तोड़ा था
वो इक लम्हा कि जिस में
गर्दिशों के पार सय्यारों ने पहली बार
हॉलीडे मनाया था
वो इक लम्हा कि जिस में तुम जन्म ले रहे थे
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