वो शख़्स अमर है, जो पीवेगा दो चाँदों के नूर
उस की आँखें सदा गुलाबी जो देखे इक लाल
Habib Jalib
Wasi Shah
Anwar Masood
Allama Iqbal
Gulzar
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Javed Akhtar
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Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
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आसमाँ के रौज़नों से लौट आता था कभी
सफ़ीर-ए-लैला-1
अज़ल के क़िस्सा-गो ने दिल की जो उतारी दास्ताँ
इतना आसाँ नहीं पानी से शबीहें धोना
बस्तियों वाले तो ख़ुद ओढ़ के पत्ते, सोए
सफ़ीर-ए-लैला-2
ज़र्द फूलों में बसा ख़्वाब में रहने वाला
आधे पेड़ पे सब्ज़ परिंदे आधा पेड़ आसेबी है
सुर्मा हो या तारा
हरीम-ए-दिल, कि सर-ब-सर जो रौशनी से भर गया
लुहार जानता नहीं
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