कोई न रस्ता नाप सका है, रेत पे चलने वालों का
अगले क़दम पर मिट जाएगा पहला नक़्श हमारा भी
Faiz Ahmad Faiz
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बाद-ए-सहरा को रह-ए-शहर पे डाला किस ने
सफ़ीर-ए-लैला-4
आसमाँ के रौज़नों से लौट आता था कभी
सफ़ीर-ए-लैला-1
लुहार जानता नहीं
बे-यक़ीन बस्तियाँ
ग़ुंचा ग़ुंचा हँस रहा था, पती पत्ती रो गया
इतना आसाँ नहीं पानी से शबीहें धोना
नौहा
सुर्मा हो या तारा
क़ैद-ख़ाने की हवा में शोर है आलाम का
चराग़ बाँटने वालों प हैरतें न करो