इतना आसाँ नहीं पानी से शबीहें धोना
ख़ुद भी रोएगा मुसव्विर ये क़यामत कर के
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सफ़ीर-ए-लैला-1
प्यासा ऊँट
ज़र्द फूलों में बसा ख़्वाब में रहने वाला
ग़ुंचा ग़ुंचा हँस रहा था, पती पत्ती रो गया
बे-यक़ीन बस्तियाँ
हुजूम-ए-गिर्या
मिरे चराग़ बुझ गए
उठेंगे मौत से पहले
सफ़ीर-ए-लैला-4
किसी का साया रह गया गली के ऐन मोड़ पर
कसे कजावे महमिलों के और जागा रात का तारा भी
मुसीबत की ख़बरें