धूप फैली तो कहा दीवार ने झुक कर मुझे
मिल गले मेरे मुसाफ़िर, मेरे साए के हबीब
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रो चले चश्म से गिर्या की रियाज़त कर के
सर्द रातों की हवा में उड़ते पत्तों के मसील
लुहार जानता नहीं
अम्न-क़रियों की शफ़क़-फ़ाम सुनहरी चिड़ियाँ
घंटियाँ बजने से पहले शाम होने के क़रीब
सुर्मा हो या तारा
सफ़ीर-ए-लैला-3
किसी का साया रह गया गली के ऐन मोड़ पर
आसमाँ के रौज़नों से लौट आता था कभी
हिजाब आ गया था मुझ को दिल के इज़्तिराब पर
आधे पेड़ पे सब्ज़ परिंदे आधा पेड़ आसेबी है