आधे पेड़ पे सब्ज़ परिंदे आधा पेड़ आसेबी है
कैसे खुले ये राम-कहानी कौन सा हिस्सा मेरा है
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धूप फैली तो कहा दीवार ने झुक कर मुझे
फ़ाख़ताएँ बोलती हैं बाजरों के देस में
सर्द रातों की हवा में उड़ते पत्तों के मसील
सफ़ीर-ए-लैला-1
प्यासा ऊँट
चराग़ बाँटने वालों प हैरतें न करो
हवा के तख़्त पर अगर तमाम उम्र तू रहा
ग़ुंचा ग़ुंचा हँस रहा था, पती पत्ती रो गया
बस्तियों वाले तो ख़ुद ओढ़ के पत्ते, सोए
कँवल हों आब में ख़ुश गुल सबा में शाद रहें
दिल के दाग़ में सीसा है और ज़ख़्म-ए-जिगर में ताँबा है
कोई न रस्ता नाप सका है, रेत पे चलने वालों का