मुसीबत की ख़बरें
मुसीबत की ख़बरें
सुनो शाम वालो मुसीबत की ख़बरें
गरेबान दामन तलक चाक कर दो
सरों पर सवारों की रौंदी हुई ख़ाक डालो
अबू-क़ैस को मौत ने खा लिया है
अमीर-ए-दमिशक़ इन दिनों सोगवारी में हैं
ग़मों के अँधेरों में जकड़े हुए
हुज़्न की आग से उन का दिल जल गया
आह बू-क़ैस की मौत के बार से झुक गए हैं ख़लीफ़ा के शाने
अबू-क़ैस क्या था तुम्हें क्या ख़बर शाम वालो
अबू-क़ैस बड़े शहसवारों में था
वो ख़लीफ़ा का राज़-आश्ना, बंदगान-ए-ख़ुदा में मुक़र्रब
यज़ीद-इबन-ए-मैसून की शब का साथी
अबू-क़ैस हिंदा के पोते का तन्हा सहारा
वही सुर्ख़ बंदर
जो मैसून अपने क़बीले से लाई
बहुत शौक़ से नाम उस का अबू-क़ैस रखा
फिर अपनी अमानत अरब और अजम के ख़लीफ़ा को सौंपी
उसी साहिब-ए-तख़्त-ओ-ताज-ओ-तरब को
जिसे आज इस्लाम की पासबानी का पूरा शरफ़ है
उसी का और अबू-क़ैस बंदर
ख़ुदा उस को बख़्शे
उसे घुड़-सवारी में ऐसी महारत थी जिस का बयाँ करना क़ुदरत से बाहर
किसी शख़्स-ए-बदबख़्त ने उस के घोड़े को बिदका दिया
उस के पाँव रिकाबों से निकले
अबू-क़ैस नीचे गिरा और मीलों तलक ठोकरों पर रहा
आह किस बे-कसी में अदम को सिधारा
मुसीबत, मुसीबत
सुनो अहल-ए-इस्लाम
अबू-क़ैस की मौत ऐसा बड़ा सानेहा है
कि जिस की मुसीबत से आल-ए-उमय्या के क़स्रों में राख और धुआँ भर गया है
दुआ!
दुआ की ज़रूरत
अबू-क़ैस की मग़फ़िरत के लिए
और यज़ीद-इबन-ए-हिंदा के सब्र ओ जज़ा के लिए
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