हरीम-ए-दिल, कि सर-ब-सर जो रौशनी से भर गया

हरीम-ए-दिल, कि सर-ब-सर जो रौशनी से भर गया

किसे ख़बर, मैं किन दियों की राह से गुज़र गया

ग़ुबार-ए-शहर में उसे न ढूँड जो ख़िज़ाँ की शब

हवा की राह से मिला, हवा की राह पर गया

तिरे नवाह में रहा मगर मियान-ए-दीन-ओ-दिल

गजर बजा तो जी उठा, सुनी अज़ाँ तो मर गया

सफ़ेद पत्थरों के घर, घरों में तीरगी के ग़म

हज़ार ग़म का एक ये कि तू भी बे-ख़बर गया

नगर हैं आफ़्ताब के, बरहना गुम्बदों के सर

सरों पे नूर के कलस, मैं नूर में उतर गया

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Harim-e-dil, Ki Sar-ba-sar Jo Raushni Se Bhar Gaya In Hindi By Famous Poet Ali Akbar Natiq. Harim-e-dil, Ki Sar-ba-sar Jo Raushni Se Bhar Gaya is written by Ali Akbar Natiq. Complete Poem Harim-e-dil, Ki Sar-ba-sar Jo Raushni Se Bhar Gaya in Hindi by Ali Akbar Natiq. Download free Harim-e-dil, Ki Sar-ba-sar Jo Raushni Se Bhar Gaya Poem for Youth in PDF. Harim-e-dil, Ki Sar-ba-sar Jo Raushni Se Bhar Gaya is a Poem on Inspiration for young students. Share Harim-e-dil, Ki Sar-ba-sar Jo Raushni Se Bhar Gaya with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.