किसी के वास्ते तस्वीर-ए-इंतिज़ार थे हम
वो आ गया प कहाँ ख़त्म इंतिज़ार हुआ
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बगूला बन के नाचता हुआ ये तन गुज़र गया
अजनबी सा इक सितारा हूँ मैं सय्यारों के बीच
ज़िंदा रहने की ये तरकीब निकाली मैं ने
जुनूँ में दामन-ए-दिल गरचे तार तार हुआ
शाम की पुरवाई
सारे मौसम बदल गए शायद
मुझे तो इंतिज़ार-ए-इश्क़ में ही लुत्फ़ आता है
मौसम-ए-गुल पर ख़िज़ाँ का ज़ोर चल जाता है क्यूँ
ये किस मुहिम पर चले थे हम जिस में रास्ते पुर-ख़तर न आए
अजब सी कशमकश तमाम उम्र साथ साथ थी
अँधेरी शब का ये ख़्वाब-मंज़र मुझे उजालों से भर रहा है