हम हवा से बचा रहे थे जिन्हें
उन चराग़ों से जल गए शायद
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आज फिर
अजब सी कशमकश तमाम उम्र साथ साथ थी
जुनूँ में दामन-ए-दिल गरचे तार तार हुआ
ब'अद मुद्दत मुझे नींद आई बड़े चैन की नींद
ज़िंदा रहने की ये तरकीब निकाली मैं ने
अजनबी सा इक सितारा हूँ मैं सय्यारों के बीच
शाम की पुरवाई
सारे मौसम बदल गए शायद
अभी तो चाक पे जारी है रक़्स मिट्टी का
ख़िज़ाँ की ज़र्द सी रंगत बदल भी सकती है
पुकारते पुकारते सदा ही और हो गई