ब'अद मुद्दत मुझे नींद आई बड़े चैन की नींद
ख़ाक जब ओढ़ ली और ख़ाक बिछा ली मैं ने
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नज़्म तकमील
ख़िज़ाँ की ज़र्द सी रंगत बदल भी सकती है
मौसम-ए-गुल पर ख़िज़ाँ का ज़ोर चल जाता है क्यूँ
अजब सी कशमकश तमाम उम्र साथ साथ थी
बगूला बन के नाचता हुआ ये तन गुज़र गया
शाम की पुरवाई
ये किस मुहिम पर चले थे हम जिस में रास्ते पुर-ख़तर न आए
सारे मौसम बदल गए शायद
जुनूँ में दामन-ए-दिल गरचे तार तार हुआ
कुछ कड़े टकराओ दे जाती है अक्सर रौशनी
किसी के वास्ते तस्वीर-ए-इंतिज़ार थे हम