अजब सी कशमकश तमाम उम्र साथ साथ थी
रखा जो रूह का भरम तो जिस्म मेरा मर गया
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किसी के वास्ते तस्वीर-ए-इंतिज़ार थे हम
पुकारते पुकारते सदा ही और हो गई
जुनूँ में दामन-ए-दिल गरचे तार तार हुआ
हम हवा से बचा रहे थे जिन्हें
कुछ कड़े टकराओ दे जाती है अक्सर रौशनी
सारे मौसम बदल गए शायद
ज़िंदा रहने की ये तरकीब निकाली मैं ने
नज़्म तकमील
मौसम-ए-गुल पर ख़िज़ाँ का ज़ोर चल जाता है क्यूँ
ये किस मुहिम पर चले थे हम जिस में रास्ते पुर-ख़तर न आए
मुझे तो इंतिज़ार-ए-इश्क़ में ही लुत्फ़ आता है