अभी तो चाक पे जारी है रक़्स मिट्टी का
अभी कुम्हार की निय्यत बदल भी सकती है
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बगूला बन के नाचता हुआ ये तन गुज़र गया
अँधेरी शब का ये ख़्वाब-मंज़र मुझे उजालों से भर रहा है
नज़्म तकमील
सारे मौसम बदल गए शायद
मौसम-ए-गुल पर ख़िज़ाँ का ज़ोर चल जाता है क्यूँ
अजनबी सा इक सितारा हूँ मैं सय्यारों के बीच
आज फिर
जुनूँ में दामन-ए-दिल गरचे तार तार हुआ
कुछ कड़े टकराओ दे जाती है अक्सर रौशनी
हम हवा से बचा रहे थे जिन्हें
मुझे तो इंतिज़ार-ए-इश्क़ में ही लुत्फ़ आता है