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ज़िंदा रहने की ये तरकीब निकाली मैं ने - अलीना इतरत कविता - Darsaal

ज़िंदा रहने की ये तरकीब निकाली मैं ने

ज़िंदा रहने की ये तरकीब निकाली मैं ने

अपने होने की ख़बर सब से छुपा ली मैं ने

जब ज़मीं रेत की मानिंद सरकती पाई

आसमाँ थाम लिया जान बचा ली मैं ने

अपने सूरज की तमाज़त का भरम रखने को

नर्म छाँव में कड़ी धूप मिला ली मैं ने

मरहला कोई जुदाई का जो दरपेश हुआ

तो तबस्सुम की रिदा ग़म को उढ़ा ली मैं ने

एक लम्हे को तिरी सम्त से उट्ठा बादल

और बारिश की सी उम्मीद लगा ली मैं ने

ब'अद मुद्दत मुझे नींद आई बड़े चैन की नींद

ख़ाक जब ओढ़ ली और ख़ाक बिछा ली मैं ने

जो 'अलीना' ने सर-ए-अर्श दुआ भेजी थी

उस की तासीर यहीं फ़र्श पे पा ली मैं ने

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