मौसम-ए-गुल पर ख़िज़ाँ का ज़ोर चल जाता है क्यूँ

मौसम-ए-गुल पर ख़िज़ाँ का ज़ोर चल जाता है क्यूँ

हर हसीं मंज़र बहुत जल्दी बदल जाता है क्यूँ

यूँ अंधेरे में दिखा कर रौशनी की इक झलक

मेरी मुट्ठी से हर इक जुगनू निकल जाता है क्यूँ

रौशनी का इक मुसाफ़िर थक के घर आता है जब

तो अंधेरा मेरे सूरज को निगल जाता है क्यूँ

तेरे लफ़्ज़ों की तपिश से क्यूँ सुलग उठती है जाँ

सर्द-मेहरी से भी तेरी दिल ये जल जाता है क्यूँ

अब के जब लौटेगा वो तो फ़ासला रक्खेंगे हम

ये इरादा उस के आते ही बदल जाता है क्यूँ

दूर है सूरज 'अलीना' फिर भी उस की धूप से

बर्फ़ की चादर में लिपटा तन पिघल जाता है क्यूँ

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Mausam-e-gul Par KHizan Ka Zor Chal Jata Hai Kyun In Hindi By Famous Poet Aleena Itrat. Mausam-e-gul Par KHizan Ka Zor Chal Jata Hai Kyun is written by Aleena Itrat. Complete Poem Mausam-e-gul Par KHizan Ka Zor Chal Jata Hai Kyun in Hindi by Aleena Itrat. Download free Mausam-e-gul Par KHizan Ka Zor Chal Jata Hai Kyun Poem for Youth in PDF. Mausam-e-gul Par KHizan Ka Zor Chal Jata Hai Kyun is a Poem on Inspiration for young students. Share Mausam-e-gul Par KHizan Ka Zor Chal Jata Hai Kyun with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.