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जुनूँ में दामन-ए-दिल गरचे तार तार हुआ - अलीना इतरत कविता - Darsaal

जुनूँ में दामन-ए-दिल गरचे तार तार हुआ

जुनूँ में दामन-ए-दिल गरचे तार तार हुआ

मगर ये जश्न सर-ए-कूचा-ए-बहार हुआ

हर एक सज्दे में दिल को तिरा ख़याल आया

ये इक गुनाह इबादत में बार बार हुआ

समेट ली हैं मोहब्बत ने सारी परवाज़ें

दिल-ओ-दिमाग़ में कैसा ये इंतिशार हुआ

नहीं बुझाया हवाओं ने पहली बार चराग़

ये सानेहा तो मिरे साथ बार बार हुआ

किसी के वास्ते तस्वीर-ए-इंतिज़ार थे हम

वो आ गया प कहाँ ख़त्म इंतिज़ार हुआ

अँधेरी शब के मुक़द्दर में इक सवेरा था

ये राज़ मुझ पे दम-ए-सुब्ह आश्कार हुआ

जो तुझ में डूब के देखा तो पा लिया ख़ुद को

'अलीना' यूँ मिरा फिर मुझ पे इख़्तियार हुआ

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