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मैं उन को कभी हद से गुज़रने नहीं दूँगा - अलीम उस्मानी कविता - Darsaal

मैं उन को कभी हद से गुज़रने नहीं दूँगा

मैं उन को कभी हद से गुज़रने नहीं दूँगा

इस तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ को मैं चलने नहीं दूँगा

तुम लाख उछाला करो अल्फ़ाज़ के शोले

फ़िरदौस-ए-मोहब्बत को मैं जलने नहीं दूँगा

करना ही पड़े चाहे सबा से मुझे साज़िश

मैं आप के गेसू को सँवरने नहीं दूँगा

मायूस निगाहों से तुम आईना न देखो

मैं अपनी निगाहों को बदलने नहीं दूँगा

बारीक सही लाख किसी शोख़ का आँचल

नज़रों को मैं शीशे में उतरने नहीं दूँगा

जब उस की बिछड़ते हुए भर आएँगी आँखें

किस तरह मैं सावन को बरसने नहीं दूँगा

वो चाहे 'अलीम' अब कभी आएँ कि न आएँ

ता-उम्र मैं पलकों को झपकने नहीं दूँगा

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