चराग़ शाम से आख़िर जलाएँ किस के लिए
चराग़ शाम से आख़िर जलाएँ किस के लिए
कोई न आएगा आँखें बिछाएँ किस के लिए
खिंचा खिंचा नज़र आता है हम से हर आँचल
सितारे तोड़ के लाएँ तो लाएँ किस के लिए
नहीं है कोई हमें ज़िंदगी का शौक़ मगर
हम अपनी जान से जाएँ तो जाएँ किस के लिए
सितम उठाने का मक़्सद भी कोई होता है
हम आसमान से शर्तें लगाएँ किस के लिए
ख़िलाफ़ हम नहीं अख़्तर-शुमारियों के मगर
सवाल ये है कि नींदें गंवाएँ किस के लिए
वफ़ा इक आग है बच्चों का कोई खेल नहीं
हम अपना मुफ़्त में दामन जलाएँ किस के लिए
शराब हम पे हमेशा से है हराम 'अलीम'
पता नहीं ये उठी हैं घटाएँ किस के लिए
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