हर मोड़ पे सफ़र था अजब बोलने न पाए
हर मोड़ पे सफ़र था अजब बोलने न पाए
मंज़िल मिली जो दर्द की लब बोलने न पाए
लिखवा दिए हैं औरों ने दीवार-ओ-दर पे नाम
इक हम थे अपना नाम-ओ-नसब बोलने न पाए
घर जल रहा था सब के लबों पर धुआँ सा था
किस किस पे क्या हुआ था ग़ज़ब बोलने न पाए
सपनों की गर्म चादरें ओढ़े हुए थे लोग
उतरी थी धूप शहर में कब बोलने न पाए
हम बोलते रहे हैं लब-ए-फ़िक्र से 'सबा'
कुछ लोग अपने-आप से जब बोलने न पाए
(713) Peoples Rate This