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घबराएँ हवादिस से क्या हम जीने के सहारे निकलेंगे - अलीम मसरूर कविता - Darsaal

घबराएँ हवादिस से क्या हम जीने के सहारे निकलेंगे

घबराएँ हवादिस से क्या हम जीने के सहारे निकलेंगे

डूबेगा अगर ये सूरज भी तो चाँद सितारे निकलेंगे

अंदाज़-ए-ज़माना कहता है फिर मौज-ए-हवा रुख़ बदलेगी

अँगारों से गुलशन फूटेगा शबनम से शरारे निकलेंगे

फ़िरदौस-ए-नज़र के दीवाने तारीक फ़ज़ा से क्या डरना

तू शम-ए-नज़र को तेज़ तो कर ज़ुल्मत से नज़ारे निकलेंगे

अंजाम-ए-कशाकश होगा कुछ देखें तो तमाशा दीवाने

या ख़ाक उड़ेगी गर्दूं पर या फ़र्श पे तारे निकलेंगे

'मसरूर' करें अहल-ए-साहिल कुछ फ़िक्र न हिम्मत वालों की

डूबेंगे सफ़ीने जितने भी इक दिन वो किनारे निकलेंगे

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