मेरे सुकून-ए-क़ल्ब को ले कर चले गए
और इज़्तिराब-ए-दर्द-ए-जिगर दे गए मुझे
Wasi Shah
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Gulzar
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(2053) Peoples Rate This
वो क्या गए पयाम-ए-सफ़र दे गए मुझे
मुझे आँखें दिखाएगी भला क्या गर्दिश-ए-दौराँ
दर्द बढ़ कर दवा न हो जाए
मोहब्बत क्या मोहब्बत का सिला क्या
मोहब्बत का रग-ओ-पै में मिरी रूह-ए-रवाँ होना
वो तअल्लुक़ है तिरे ग़म से कि अल्लाह अल्लाह
मेरी बेताबियों से घबरा कर
दर्द का फिर मज़ा है जब 'अख़्तर'
मआल-ए-ज़ब्त-ए-पैहम हो गई है
हमें दुनिया में अपने ग़म से मतलब
मुझे तो कल भी न था उन पर इख़्तियार कोई